चातुर्मास आध्यात्मिक शक्तियों के जागरण का सर्वोत्तम समय – आचार्य लोकेश
अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक आचार्य डॉ लोकेशजी ने रविवारीय प्रवचन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि चातुर्मास आध्यात्मिक शक्तियों के जागरण का सर्वोत्तम समय है जिसमें हम स्वाध्याय, ध्यान, जप, तप आदि अनुष्ठानों के द्वारा अपनी आंतरिक शक्तियों को जगा सकते है। उन्होने कहा इस चातुर्मास के कालखंड का अधिक से अधिक सदुपयोग करते हुए हमे धर्म की साधना करनी चाहिए।
आचार्य लोकेश ने कहा कि धर्म के तीन आयाम है उपासना, नैतिकता और अध्यात्म। उन्होने कहा उपासना के विभिन्न प्रकारों के पीछे भी हमारे ऋषि-मुनियों की एक आध्यात्मिक-वैज्ञानिक दृष्टि रही है। किन्तु हमें केवल उपासना पर नहीं ठहरना है धर्म का दूसरा आयाम है जीवन में नैतिक एवं चारित्रिक मूल्यों का विकास वह तभी संभव है जब हम उसके लिए निरंतर प्रयासरत रहें। उन्होने कहा तीसरा आयाम सबसे महत्वपूर्ण है जीवन में अध्यात्म का अवतरण उससे आत्मा भिन्न, शरीर भिन्न इस भेद विज्ञान की अनुभूति होती है, स्व और पर के बीच की भेद रेखा खत्म होती है। उन्होने कहा उसके लिए निरंतर अभ्यास की आवश्यकता है।
आचार्य लोकेशजी ने कहा कि आज समाज में धर्म का तेजस्वी स्वरूप इसलिए दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है क्योंकि केवल उपासना को धर्म मान लिया गया है। उन्होने कहा कि उपासना भी उपयोगी है किन्तु आचरण शून्य उपासना का महत्व सुगंधित शव से अधिक नहीं हो सकता । आचार्य लोकेशजी ने कहा आज अपेक्षा है कि धर्म को अध्यात्म से जोड़ा जाए, ऐसा करने से युवा पीढ़ी भी धर्म के अधिक नजदीक आएगी।