आचार्य लोकेशजी ने जैनधर्म को विश्व व्यापी पहचान दी है – श्री श्री रविशंकर

अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक आचार्य लोकेशजी ने आर्ट ऑफ लिविंग के मुख्यालय पर पूज्य श्री श्री रविशंकरजी के सानिध्य में आयोजित साधकों के स्वाध्याय शिविर को संबोधित करते हुए कहा कि स्वाध्याय के दो अर्थ हैं आध्यात्मिक दृष्टि से अपने आपको जानना स्वाध्याय है और लोकिक दृष्टि से ज्ञान-विज्ञान की जानकारी होना भी स्वाध्याय है। भगवान महावीर की वाणी के अनुसार स्वाध्याय से विवेक चेतना का जागरण होता है उसी से व्यक्ति अच्छे और बुरे का ज्ञान कर पाता है, उन्होने कहा कि स्वाध्याय के पाँच प्रकार है वाचना, पृच्छ्ना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मकथा । आचार्य लोकेशजी ने कहा कि सद-साहित्य के पठन-पाठन से जीवन में श्रेष्ठ संस्कारों का निर्माण होता है, पुस्तक से अच्छा कोई मित्र नहीं है। उन्होने कहा अच्छी पुस्तकें हमारे जीवन में आलोक स्तम्भ बनकर हमारा मार्ग प्रशस्त करती है, जीवन की दिशाए स्पष्ट करती है, उन्होने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि तकनीकी विकास के इस युग में स्वाध्याय की पृवृति कम होती जा रही है, उन्होने युवा पीढ़ी से प्रतिदिन कुछ समय अच्छे साहित्य के पठन-पाठन को दिनचर्या में शामिल करने का आह्वान किया।

आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकरजी ने स्वाध्याय शिविर के साधकों को संबोधित करते हुए कहा कि आज जैन दर्शन के प्रवक्ता आचार्य लोकेशजी को सुनने का अवसर मिल रहा है वे गहरी से गहरी बात को भी रोचक ढंग से बोलते हैं यह भी एक विशिष्ट कला है जिसे सभी को सीखना है उन्होंने जैनधर्म को विश्व व्यापी फैलाने में बड़ा योगदान दिया है। श्री श्री ने सभी साधकों को प्राचीन अवधान विधा को सीखने की प्रेरणा दी।

इस अवसर पर श्री श्री रविशंकरजी ने आचार्य लोकेशजी व भट्टारक जी को उत्तरीय ओढ़ाकर सम्मानित किया। कार्यक्रम में आचार्य लोकेशजी के साथ नवग्रह तीर्थ वरूर के भट्टारक जी एवं रीलिजन वर्ल्ड दिल्ली के भव्य श्रीवास्तव भी उपस्थित थे

सधन्यवाद,

कर्ण कपूर,

कार्यालय सचिव,

मो: 9999665398

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